श्री नानक चन्द काम्बोज (8 दिसंबर 1944 - 5 अगस्त 2016) काम्बोज समुदाय के एक प्रसिद्ध व वरिष्ठ सेवक एवं कार्यकर्ता थे। वे काम्बोज समुदाय के एक मजबूत स्तंभ थे जिन्होंने अपने जीवन को काम्बोज समुदाय को एकजुट करने व काम्बोज समुदाय और लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन एवं परिवार
श्री नानक चन्द काम्बोज का जन्म 8 दिसंबर 1944 को पाकिस्तान के मोन्टगोमरी जिले में श्री जामा राम (पिता) एवं श्रीमती जीवनी बाई (मां) के परिवार में हुआ था। उनके पिता का देहांत पाकिस्तान में जब वे केवल चार महीने के थे हो गया था। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद, वह अपनी मां के साथ गांव गिदरांवाली, तहसील अबोहर, जिला फाजिल्का, पंजाब में बस गए। उनका विवाह 11 मई 1972 को श्री राम किशन काम्बोज की बेटी सरोज काम्बोज से हुआ जो एक घरेलू, सहनशील व सामाजिक औरत हैं उन्होंने अपने पती श्री नानक चन्द जी के उत्थान में सराहनीय योगदान दिया। नानक चन्द जी के तीन बेटे हैं: विक्रम काम्बोज, दीपक काम्बोज और नवनीत काम्बोज। उनके तीनों पुत्र अच्छी तरह से सथापित हैं तथा अपने परिवार की परम्पराओं को भली-भांति निभा रहें हैं।
शिक्षा एवं व्यवसाय
श्री नानक चन्द जी बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव गिदरांवाली के सरकारी स्कूल में ली। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से 1961 में मैट्रिक परीक्षा, 1962 में हिंदी में ऑनर्स (प्रभाकर), 1963 में प्री-यूनिवर्सिटी (साइंस ग्रुप), 1968 में मध्यस्तरीय (अंग्रेजी) शिक्षा उतीर्ण की। 1967 में हरियाणा राज्य तकनीकी शिक्षा बोर्ड से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में तीन साल का डिप्लोमा किया। 1969 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर से राइस प्रोसेस इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया।
उन्होंने अपने प्रारंभिक कार्यकाल में हिंदी और संस्कृत के शिक्षक के रूप में काम किया। उन्हें हिंदी साहित्य में रुचि थी। उन्होंने हिंदी में बहुत सारे लेख लिखे हैं और हिंदी साहित्य में कई पुरस्कार जीते हैं।
उन्होंने 11 फ़रवरी 1969 में भारतीय खाद्य निगम में इंजीनियरिंग-प्रभारी का पद-भार सम्भाला तथा 1975 में प्रबंधक (इंजीनियरिंग)(Asstt. Manager) व 1984 में उप प्रबंधक (इंजीनियरिंग)(Deputy Manager) व 31 दिसंबर 2004 में उच्च पद से सेवा-निवृत्त हुए।
योगदान
श्री नानक चन्द जी ने समाज सुधार, सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध, गरीबों की सहायता करने एवं साहित्यक क्षेत्रों में कई कार्यक्रम व संस्था चलाने में एहम भुमिका निभाई। वह वास्तव में परोपकारी, ईमानदार, सत्यवादी, बुद्धिमान, मिलनशील, कर्मठ व बहुत उदार व्यक्ति थे। उनका देश-विदेश में काम्बोज समुदाय को संगठित करने में भारी योगदान रहा। उन्होंने काम्बोज इतिहास पर शोध (research) किया और विभिन्न इतिहासकारों को काम्बोज - क्षत्रिय आर्य जनजाति के इतिहास व संस्कृति के बारे में बहुत सारे ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी प्रदान की और उनकी पुस्तकों और शोध (research paper) की समीक्षा करने में उनकी मदद की। अपनी नौकरी के दौरान उन्हें भारत के विभिन्न राज्यों की यात्रा करने का मौका मिला। वह हमेशा लोगों से संपर्क करते थे और उन राज्यों में काम्बोज समुदाय के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास करते थे। वह हमेशा सभी काम्बोज लोगों को काम्बोज इतिहास, संस्कृति व शहीद ऊधम सिंह कम्बोज के जीवन-तथ्यों की जानकारी देते और अपने नाम के साथ कमबोज उपनाम को लिखने के लिए प्रेरित करते थे। उनके जीवन के कुछ विषेश योगदान:
- उन्होंने राइजिंग काम्बोज एसोसिएशन, ग्रीन चौधरी एसोसिएशन और नवयुवक काम्बोज सभा का गठन किया था।
- उनके अथक प्रयासों से वर्ष 1970 में शहीद ऊधम सिंह काम्बोज समारक ट्रस्ट (दिल्ली) का गठन हुआ। 26 दिसंबर 1981 को शालीमार बाग दिल्ली में दिल्ली प्रशासन द्वारा आवंटित भूखंड पर शहीद ऊधम सिंह काम्बोज समारक धर्मशाला का निर्माण करवाया।
- उन्होंने चंडीगढ़ में शहीद ऊधम सिंह मेमोरियल भवन सोसाइटी के गठन में एहम भुमिका निभाई, भवन का निर्माण करवाया एवं भवन के तीन तक चेयरमैन रहे।
- उन्होंने लंदन से शहीद ऊधम सिंह की अस्थियों को जन्म स्थान सुनाम लाने के लिये पंजाब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के साथ पत्रों के माध्यम से संवाद किया। उन्होंने अखिल भारतीय काम्बोज महासभा की और से एक शिष्ठ मंडल (delegation) लंदन भेजा। 19 जुलाई 1974 को शहीद ऊधम सिंह की अस्थियों को भारत लाने और बाद में 31 जुलाई 1974 को अंतिम संस्कार करने और 3 अगस्त 1974 को हरिद्वार गंगा नदी में विर्सजित करने में नानक चन्द जी का सराहनीय योगदान रहा।
- श्री नानक चन्द जी स्वामी धरमवीर की अध्यक्षता में भारत-कंबोडिया मैत्री और सांस्कृतिक संघ (Indo-Combodian Friendship and Cultural Association) के संयोजक बने तथा 1952 में रायल परिवार से बैठक करवाई तथा उनके निमन्त्रण पर कंबोडिया के राजा नोरोदॉम सिहानोक (Norodham Sihanouk) ने 1955 में भारत का दौरा किया। बाद में 1959 में भारतीय काम्बोजो का एक शिष्ठ मंडल कंबोडिया गया जिसका गठन नानक चन्द जी की अगुवाई में हुआ।
- श्री नानक चन्द जी 1984 से 1992 तक जयपुर में तैनात थे। सवाई मान सिंह अस्पताल जयपुर में राजस्थान और हरियाणा के गांवों और छोटे शहरों से रोगियों और उनके रिश्तेदारों हमेशा उनके पास आते थे। वह अपनी पत्नी सरोज काम्बोज के साथ सुबह और शाम सवाई मान सिंह अस्पताल में इन सभी रोगियों का ख्याल रखते , भोजन और उचित आवास देते थे।
- श्री नानक चन्द जी ने कई प्रदेशों में काम्बोज धर्मशालाओं का गठन करने व शहीद ऊधम सिंह के बुत को लगवाने में सहायता की।
- श्री नानक चन्द जी ने गरीब लड़कियों की शादी, नवयुवकों को नौकरी लगवाने व रिश्ते करवाने में सहायता की।
काम्बोज सभाओं का गठन
बचपन से ही श्री नानक चन्द जी काम्बोज समाज को संगठित करने के हितैषी रहे। उन्होंने वर्ष 1969 में टोम्बा मेला के अवसर पर अखिल भारतीय काम्बोज महासभा (ALL INDIA KAMBOJ MAHASABHA) का गठन दिल्ली में कुडसिया घाट, यमुना नदी, तिब्बतियन मंदिर के पास किया था। उन्होंने 10 फरवरी 1974 को अखिल भारतीय काम्बोज को फर्मों और सोसायटी (Firms & Societies) दिल्ली के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत कराया। 28 नवंबर, 1974 को काम्बोज धर्मशाला, कपालमोचन मेला, यमुनानगर, हरियाणा में महासभा का चुनाव कराया जिसमें कर्ता राम जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष व उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। नानक चन्द जी एक केंद्रीय सरकारी कर्मचारी थे, इसलिये उन्होंने काम्बोज महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लेने से मना कर दिया था। 25 अगस्त 2005 को कर्ता राम जी के देहांत के बाद नानक चन्द जी कार्यवाहक अध्यक्ष रहे तथा 22 जुलाई 2007 से 5 अगस्त 2016 (स्वर्गवास) तक महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इस अवधी में उन्होंने कई प्रदेशों में जिला एवं राज्य स्तर पर काम्बोज सभाओं का गठन कराया।
स्वर्गवास
श्री नानक चन्द जी का निधन 5 अगस्त 2016 को चंडीगढ़ में हुआ।
विशेषताऐं
श्री नानक चन्द जी काम्बोज समाज के एक मजबूत स्तंभ थे जिन्होंने अपनी प्रतिभावन कार्यशाली से समस्त ससांर में काम्बोजों को संगठित किया। वह एक निहायत ईमानदार, सत्यवादी, बुद्धिमान, मिलनशील, कर्मठ एवं उच्चविचारों के व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने बिना किसी लालच व घमण्ड के जीवनभर अपने खर्चे पर काम्बोज समाज एवं युवाऔं का मार्गदर्श्न करके नई दिशा देने का प्रयास किया। उनके निधन से न केवल उनके परिवार को बल्कि समस्त काम्बोज समाज को असहनीय दुःख एवं भारी क्षति हुई जिसकी शायद कभी भी प्रति पूर्ति नहीं हो सकेगी।
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