महाभारत तथा अन्य भारतीय ग्रंथों में काम्बोज (Kamboja) तथा परम काम्बोज (Parma Kamboja) महाजनपदो का वर्णन मिलता है।यह महाजनपद महाभारत काल में दूर उत्तर पश्चिम में बहलीका, उत्तर मद्रा और उत्तर कुरु देश के पास थे। यह महाजनपद आधुनिक अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के कुछ हिस्सों में स्थित थे।
कुरुक्षेत्र युद्ध में परम काम्बोज
महाभारत के द्रोण पर्व में बताया है कि परम काम्बोज समूह के 6000 सैनिकों ने कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की तरफ़ से कौरवों के विरुद्ध युद्ध किया था। उन्हें 'बहुत सुन्दर, बहुत भाग्यशाली काम्बोज' (परभद्रकास तु काम्बोजाः), बेहद भयंकर, 'मृत्यु का व्यक्तित्व' (सहस्राण्य उदायुधाः), मृत्यु के देवता यम की तरह भयभीत और कुबेर जैसे समृद्ध यानी खजाने के देवता के रूप में वर्णित किया गया है ( काम्बोज: .... यम वैष्णवन.ओपामाः 7.23.42-44)।
युक्तैः परमकाम्बॊजैर जवनैर हेममालिभिः।
भीषयन्तॊ दविषत सैन्यं यम वैश्रवणॊपमाः।।
परभद्रकास तु काम्बोजाः षट सहस्राण्य उदायुधाः।
नानावर्णैर हयश्रेष्ठैर हेमचित्ररथध्वजाः।।
शरव्रातैर विधुन्वन्तः शत्रून विततकार्मुकाः।
समानमृत्यवॊ भूत्वा धृष्टद्युम्नं समन्वयुः।।
- महाभारत, द्रोण पर्व, अध्याय 23, श्लोक 42-44
यह युद्ध का बारहवां दिन था। उनके पीछे सुचित्त के पुत्र युद्धदुर्मद सत्यधृति, श्रेणिमान, वसुदान ने और काशिराज के पुत्र अभिभू चल रहे थे। (41) 'परम काम्बोज' देश के सब योद्धा वेदवान, यम और कुबेर के समान पराक्रमी योद्धा वेगशाली, सुवर्णमालाओं से अलंकृत एवं सुशिक्षित, उत्तम काबुली घोड़ों द्वारा शत्रुओं को भयभीत करते हुए धृष्टद्युम्न का अनुसरण कर रहे थे। (42) 'परम काम्बोज' देश के छ: हजार काम्बोजदेशीय प्रभद्रक नाम वाले योद्धा हथियार उठाये, भाँति-भाँति के श्रेष्ठ घोड़ों से जुते हुए, सुनहरे रंग के रथ और ध्वजा से सम्पन्न हो धनुष फैलाये अपने बाण-समूहों द्वारा शत्रुओं को भय से कम्पित करते हुए सब समान रूप से मृत्यु को स्वीकार करने के लिये उद्यत हो धृष्टद्युम्न के पीछे-पीछे जा रहे थे। (43-44)
डॉ जिया लाल काम्बोज के अनुसार इस बारहवें दिन के युद्ध में अन्य अनेक योद्धाओं के साथ काम्बोजदेश के राजा चन्द्रवर्मा और निषिध देश के राजा बरहत्क्ष्त्र धृष्टद्युम्न के हाथों मारे गये। काम्बोजदेश के राजा चन्द्रवर्मा राजा सुदक्षिण के पिता थे।
- प्राचीन कम्बोज जन और जनपद, डॉ जिया लाल काम्बोज, पृष्ठ 70
इसलिए इस संदर्भ में, परभद्रक शब्द निश्चित रूप से विशेषण है और संज्ञा नहीं, और इसलिए, परभद्रक वंश से भ्रमित नहीं होना चाहिये। विशेषण के रूप में शब्द परभद्रक / परभद्रकासतु शब्द का अर्थ है 'बेहद सुन्दर, अत्यधिक भाग्यशाली'। डॉ रॉबर्ट शाफर, डॉ जिया लाल काम्बोज, स. किरपाल सिंह दर्दी आदि जैसे शोधकर्ताओं ने, इसलिए सही ढंग से शब्द परभद्रक शब्द को वर्तमान संदर्भ में विशेषण माना और संज्ञा नहीं और काम्बोजों को 'बहुत सुन्दर, बहुत भाग्यशाली' के रूप में योग्य माना।
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