सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्मा ने सर्वप्रथम स्वयं जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इस धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब श्लोक हैं। यह बृहत् धर्मग्रंथ पुराण, देवलोक में आज भी मौजूद है। मानवता के हितार्थ महान संत कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने एक अरब श्लोकों वाले इस बृहत् पुराण को केवल चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर इस पुराण को अठारह खण्डों में विभक्त किया, जिन्हें अठारह पुराणों के रूप में जाना जाता है। ये पुराण इस प्रकार हैं :
- ब्रह्म पुराण
- पद्म पुराण
- विष्णु पुराण
- शिव पुराण
- भागवत पुराण
- भविष्य पुराण
- नारद पुराण
- मार्कण्डेय पुराण
- अग्नि पुराण
- ब्रह्मवैवर्त पुराण
- लिंग पुराण
- वराह पुराण
- स्कंद पुराण
- वामन पुराण
- कूर्म पुराण
- मत्स्य पुराण
- गरुड़ पुराण
- ब्रह्माण्ड पुराण
पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है पुराना, लेकिन प्राचीनतम होने के बाद भी पुराण और उनकी शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के सन्दर्भ में उनका महत्त्व और बढ़ गया है। ये पुराण श्वांस के रूप में मनुष्य की जीवन-धड़कन बन गए हैं। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं और धर्म हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं पुराणों पर आधारित है।
पुराण शब्द ‘पुरा' एवं ‘अण' शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना' अथवा ‘प्राचीन' होता है । ‘पुरा' शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत । ‘अण' शब्द का अर्थ होता है -कहना या बतलाना अर्थात् जो पुरातन अथवा अतीत के तथ्यों, सिद्धांतों, शिक्षाओं, नीतियों, नियमों और घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करे। माना जाता है कि सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। हिन्दू सनातन धर्म में, पुराण सृष्टि के प्रारम्भ से माने गये हैं, इसलिए इन्हें सृष्टि का प्राचीनतम ग्रंथ मान लिया जाता है किन्तु ये बहुत बाद की रचना है। सूर्य के प्रकाश की भाँति पुराण को ज्ञान का स्रोत माना जाता है। जैसे सूर्य अपनी किरणों से अंधकार हटाकर उजाला कर देता है, उसी प्रकार पुराण अपनी ज्ञानरूपी किरणों से मानव के मन का अंधकार दूर करके सत्य के प्रकाश का ज्ञान देते हैं। सनातनकाल से ही जगत् पुराणों की शिक्षाओं और नीतियों पर ही आधारित है।
पुराण प्राचीनतम धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि और दिव्य प्रकाश का खज़ाना हैं। इनमें हमें प्राचीनतम् धर्म, चिंतन, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति और अन्य अनेक विषयों का विस्तृत विवेचन पढ़ने को मिलता है। इनमें ब्रह्माण्ड (सर्ग) की रचना, क्रमिक विनाश और पुनर्रचना (प्रतिसर्ग), अनेक युगों (मन्वन्तर), सूर्य वंश और चन्द्र वंश का इतिहास और वंशावली का विशद वर्णन मिलता है। ये पुराण के साथ बदलते जीवन की विभिन्न अवस्थाओं व पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म को प्रदीप्त करते हैं। ये हमारी जीवनशैली और विचारधारा पर भी विशेष प्रभाव डालते हैं। गागर में सागर भर देना अच्छे रचनाकार की पहचान होती है। किसी रचनाकार ने अठारह पुराणों के सार को एक ही श्लोक में व्यक्त कर दिया गया है:
परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्। अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन।।
अर्थात्, व्यास मुनि ने अठारह पुराणों में दो ही बातें मुख्यत: कही हैं, परोपकार करना संसार का सबसे बड़ा पुण्य है और किसी को पीड़ा पहुँचाना सबसे बड़ा पाप है। जहाँ तक शिव पुराण का संबंध है, इसमें भगवान् शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान् शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।
पुराण भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। कोई भी व्यक्ति इस कथन की सत्यता से इंकार नहीं कर सकता। इसके कारण हैं। वेदों ने भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। वेदों में निहित बीज-सूत्रों ने उपनिषदों की चिंतन धारा को उद्गम दिया जिससे भारतीय दर्शन की सुरसरि प्रवाहित हुई। किंतु इनसे भारतीय दर्शन, भारतीय चिंतन तथा भारतीय आध्यात्मिक विचार प्रणाली ही निर्मित हुई। भारतीय जीवन को जीवन-रस, जीवनशैली, जीवन-व्यवहार, जीवन की धड़कन तथा लोक-व्यवहार और लोक-जीवन का व्यवस्थित स्वरूप दिया पुराणों ने।
भारतीय पुराण साहित्य विशाल है, विस्तृत है, गहन है। उसे सचमुच ही जीवन व्यवहार-सिंधु की उपमा दी जा सकती है। जीवन-व्यवहार के अनंत क्रिया-कलापों, घटनाओं, कर्तव्यों-अकर्तव्यों तथा कार्य-विधियों, कार्य-प्रणालियों में ऐसा कोई भी पक्ष या पहलू नहीं बचा है, जो पुराणकारों की नजरों से ओझल हुआ हो या जिस पर उनकी लेखनी ने प्रकाश न दिया हो। यह प्रकाश उन्होंने दिया है व्याख्याओं या विवेचनाओं के रूप में, प्रश्नों और उत्तरों के रूप में, कथाओं या वार्ताओं के रूप में, आख्यानों, उपाख्यानों या दृष्टांतों के रूप में। अब यह सब भारत के लोक-जीवन में इस प्रकार रच-बस गया है कि इन सबका प्रात्यक्षिक रूप दैनिक जीवन व्यवहार में देखकर जब पुराणों को पढ़ते समय इनके सैद्धांतिक रूप की वहां पहले से ही उपस्थिति से साक्षात्कार होता है तो मन चमत्कृत हो जाता है और लोक-जीवन की हर धड़कन में इनकी गहरी पैठ देखकर मन आश्चर्यचकित, रोमांचित और गदगद हुए बिना नहीं रहता। दीर्घकाल से व्यवहार में घिसते-घिसते निश्चय ही बहुत सी चिंतन धाराओं का स्वरूप मुड़-तुड़कर अपना मूल स्वरूप खो चुका है फिर भी यह बात समझने में देर नहीं लगती कि इनकी जड़ें पुराणों में हैं। ऊपर कहा जा चुका है कि पुराण साहित्य अत्यंत विशाल, विस्तृत व गहन है। अत: कोई भी जिज्ञासु अपने किसी भी प्रश्न या शंका का उत्तर पुराणों के विश्वकोष में खोज सकता है। हां, यह सही है कि वह उत्तर पुराणकारों की तत्कालीन चिंतन धाराओं और चिंतन स्तरों के अनुकूल ही होगा। बाद में चिंतकों द्वारा किए गए संशोधनों के प्रभाव दिखाई देंगे ही। पुराणों की विषयवस्तु
पुराणों में गाथाएं हैं, कथाएं हैं। सृष्टि की रचना और प्रलय की प्रक्रिया के संबंध में कल्पना की अद्भुत उड़ानें हैं। जीवन के प्रेय व श्रेय, कर्म-अकर्म, धर्म-अधर्म, बंधन-मोक्ष, लोक-परलोक, सुमार्ग-कुमार्ग और स्वर्ग-नरक के विश्लेषणात्मक विवरण हैं। प्रवृत्ति-निवृत्ति (कर्म-संन्यास), विधि-निषेध, यम-नियम के विस्तृत विवेचन हैं और विभिन्न अवतारों, देवताओं, तीर्थों, पहाड़ों, पर्वों व अनुष्ठानों की आवश्यकताओं और माहात्म्य के अर्थपूर्ण विवरण हैं। सम्राटों व राजाओं के वंशों व कार्यों, उनके उत्थान-पतन, उनकी उपलब्धियों व भूलों की अर्थगर्भित कहानियां हैं तथा भूगोल, खगोल, ज्योतिष, सामुद्रिक, स्थापत्य, व्याकरण, छंद विज्ञान, आयुर्वेद, प्रेत-कल्प, अध्यात्म, ब्रह्मविद्या आदि अनेकानेक विषयों के अवलोकन, चिंतन व कल्पना पर आधारित अद्भुत विवरण हैं।
पुराण भारतीय जीवनशैली के आधार हैं...
पुराण कोष ज्ञान के, कथाओं के, सीखों के,
पुराण विविध विद्याओं के विशद आगार हैं।
पुराण झरोखे हैं अमर भारतीय संस्कृति के,
पुराण दिव्य गाथाओं के अनोखे भंडार हैं।
पुराण दिग्दर्श हैं विविध विधि-विधानों के,
पुराण सभी वेदों के, उपनिषदों के सार हैं।
पुराण व्यावहारिक निचोड़ हैं ऋषि चिंतन के,
पुराण भारतीय जीवनशैली के आधार हैं।
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